अपना ही घर भरने वालो डूब मरो
मेरे देश को ठगने वालो डूब मरो
जनता ने तो बख़्शा तख़्त व ताज तुम्हें
ताक़त पाकर तपने वालो डूब मरो
यह धरती हमने भी लहू से सींची है
हमको पराया कहने वालो डूब मरो
कोई तुमको लूट रहा तुम चुप बैठे
इस बस्ती में रहने वालो डूब मरो
जिसके जुल्मो सितम से परेशां हैं जनता
उसकी जै-जै करने वालो डूब मरो
उनका हश्र यही होगा जो नहीं सुने
अंधे कुएँ में गिरने वालो डूब मरो
©Hans gunjal