"नजरों का खेल था सारा..
आज बदले-बदले से जनाब लगते हैं..
ठीक नहीं उनके मिजाज लगते हैं...
डूबे रहते थे जो इश्क़ मे मेरे..
आज बदले-बदले से सरकार लगते हैं..
किसी और की सूरत के तलबगार लगते हैं..
मुझसे कुछ नाराज़ लगते हैं.
अब तो घर टूटने के आसार लगते हैं.."
©Priyanka Dwivedi
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