छात्र v/s भगीरथ प्रयास
हर छात्र अपने जीवन में,
करता अनगिनत भगीरथ प्रयास.
हर प्रयास अंतिम मानकर,
मन मस्तिष्क में यह ठानकर..
माँ- बाप बैठे उम्मीदें लिए,
हो शायद ये आख़री प्रयास..
हर बार मिली असफलता से,
मैं टूट रहा था अंतर्मन में..
मैं हार कैसे मानता,
रण छोड़ कैसे भागता..
बात थी स्वाभिमान की,
माँ-बाप के सम्मान की..
ख़ुद से एक प्रतिज्ञा ले,
कर लूंगा ये सोच रखा हैं..
नदियों की धाराओं को छोड़,
समुद्र में गोते लगा आउ..
दाव पर सर्वस्व लगा है,
पर क्या सूर्य के सम्मुख अंधेरा टिका हैं..
अंतिम 'विजय' तक,
भगीरथ प्रयास जारी रखूँगा,, जारी रखूँगा...!
©Deepak Dubey
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