कब तक रहूँगा यूँ ही मैं तन्हा अंधेरी रातों में लग | हिंदी Shayari

"कब तक रहूँगा यूँ ही मैं तन्हा अंधेरी रातों में लगता नही कि जीते जी मुकम्मल हो सकूँगा यहाँ ✍️imran ilahi"

 कब तक रहूँगा यूँ ही मैं तन्हा अंधेरी रातों में 
लगता नही कि जीते जी मुकम्मल हो सकूँगा यहाँ ✍️imran ilahi

कब तक रहूँगा यूँ ही मैं तन्हा अंधेरी रातों में लगता नही कि जीते जी मुकम्मल हो सकूँगा यहाँ ✍️imran ilahi

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