इमारतों में भी तस्वीर तलाशती है
ये ज़िंदगी हमेशा जंजीर तलाशती है
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किसी से तो खाक होगी ये रिवायत
जो किताबों में लिखा कबीर तलाशती है
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उन्होंने जबसे किये हैं अपने आंसू जिंदा
ये आंखे उन फूलों का नीर तलाशती हैं
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उसको होगी कभी तुम्हारी भी खबर
क्या अंधेरे में उड़ता तीर तलाशती है
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इस पीढी की अजब आजमाइश है
दरख़्त काटकर पीर तलाशती है
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जब रोशनी में तब्दील होती है भूख
गरीब को छोड़कर अमीर तलाशती है
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सबने कह दिया है उस लड़के को मुर्दा
मां ठहरती है फिर लकीर तलाशती है
©Dr. Ayush Bansal (Musafir)
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