ये वादियां तेरे होने से यूं महकती हैं
के जैसे इत्र घुला हो सभी दिशाओं में
तेरी यादों का हाथ थामे अब गुजरते हैं
कोई रंगत ही नहीं है अब इन फिज़ाओं में
किसी दरख़्त के साए में बैठ जाते है
भर के तसवीर तेरी , झील सी निगाहों में
तू कभी बन के हवा ज़ुल्फ से गुज़रता है
अब भी शमिल है हया बनके तू अदाओं में
हर एक मौसमों में तुझको मैं मेहसूस करू
तू रात का है समां तू ही है सबाओं में
मैं ज़िंदगी के इस सफ़र में दूर जा पहुंची
तू नहीं है कहीं फिर भी तू मेरी चाहों में
ये वादियां तेरे होने से यूं महकती हैं
के जैसे इत्र घुला हो सभी दिशाओं में
©Deepika Sharma
एक एहसास है तू
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