"यहां के नहीं हो"
कभी बोलना बहरे पत्थरों से
जिन्हे अपने जिन्दा होने का वहम है
कभी सुनाई देंगी गूंगी जुबानें
जिन्हें न दीन है न रहम है
महसूस कर सकते हो
तो यहां के नहीं हो
न कोई तुम्हारा न तुम किसी के हो
भीड़ में दिखाई देंगे
जिनका न धड़ है न सिर है
बस दीमाग है
एक बिमार दीमाग
उनसे बचकर निकलो तो
महसूस करते हो
तो यहां के नहीं हो
लाशों के शहर में तन्हा हो...
- प्रेरित कौशिक
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