एक शाम की तरह मैं भी ढल जाऊंगा
होगी सुबह, पर मैं वापस नहीं आऊंगा !
जमीं पर बिखर जाऊंगा बनकर एक टूटता तारा
उस वक्त मांग लेना जो चाहे दिल तुम्हारा
और मैं बिखर कर जमी पर,
किसी के पैरों तले रौंदा चला जाऊंगा !
फिक्र खुद की नही है , ख्वाइश थी मेरी
तेरी ख्वाइश बनकर ही सही पर तेरे लबों पे तो मुस्कुराऊंगा ।
©Akash Vats
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