वो बचपन के दिन भी कितने सुहाने थे,
जहां वो हमारे मिट्टी के आशियाने थे,
खेल और खिलौनों की दुनिया बड़ी प्यारी थी,
दादी का प्यार और नानी की कहानी थी,
ना gf कि चिंता, ना फ्यूचर के ठिकाने थे,
वो बचपन के दिन भी कितने सुहाने थे,
पैसे थोड़े कम, पर पक्की अपनी यारी थी,
२-२ रुपए में भी हमको तो पार्टी माननी थी,
जहां स्कूल की मस्ती और दोस्तों के ताने थे,
वो बचपन के दिन भी कितने सुहाने थे,
बस हम ही हम थे सच्चे, और झूठी दुनियादारी थी,
बस चार दोस्तों में बसती, अपनी दुनिया सारी थी,
छोटी आंखो में बसते, वो सपने कितने सुहाने थे,
वो बचपन के दिन भी कितने सुहाने थे,
क्या ख़ूबसूरत थे दिन, क्या ख़ूबसूरत जमाने थे,
वो बचपन के दिन भी कितने सुहाने थे ।।
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