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'मछुआरे की आस
यदि हौसला बुलंद हो तो
पर्वत भी झुक जाते हैं,
लाख मुसीबत आए साहस
से वह भी संवर जाते हैं!
आस लगी पथ मछुआरे के
कब किनार लंगू अपने तट के मझधार कठिन ये धार प्रबल,
हाथ सबल नहीं लगता बल!
आंखें चौंधियाई जाती है
पौरूषता घटती जाती है,
प्रकाश सिमटता जाता है अंधकार निगलने आता है!
बच्चों संग घरवाली भी राह देखती होगी अब भी,
घर-घर दीप उजाले होंगे
मस्त सभी के घर वाले होंगे
एक आवाज मन में उभरी मछुआरे की हिम्मत संभली, अपनी क्षमता, अपना यह बल कभी ना समझो खुद को निर्बल!
बादल छंटा तूफां भी शांत
जाल में मछली फंसी प्रयत्न,
हौसला साहस धैर्य,धन
कभी न खोना,प्रयत्न ढूंढना
कभी ना रोना।।
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©Tripura kaushal
#मछुआरे की आस