जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना,
नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ,
बच्चों से पिता को, बहन से भाई को,
पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को,
कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है,
द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है,
इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे,
कब आएगी चैन की नींद,
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।
लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी,
पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने,
बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें,
जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार,
सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात,
ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद
हर हार के बाद है जीत,
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।
दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना,
मिली है जो सीख, उसे संभाल रखना,
प्रकृति से अब और मत खेलना, संसार सब का है,
याद रखना, ज़्यादा नहीं, थोड़े की है ज़रूरत,
लालच भरी ज़िंदगी की, बदलनी है सूरत,
खुशियों से भरा साल दो हज़ार इक्कीस है नज़दीक,
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।
प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस" ✍