न गुजरी , न गुजरती है ये कैसी रात है ,
न चाँद है न सितारे है ये एक अँधेरी रात है ,
भर जाती है आंखे मेरी इस तन्हाई में ,
कितनी गुमसुम कितनी अकेली रात है,
खुद से ही अनबन में करवटें बदलते रहे,
कितने जवाब पूछती है ये सवालों की रात है ,
अपने ही दर्द में कहराती रही मैं रात भर ,
किसी ने सुनी नही सिसकियां मेरी ये बहरी रात है,
न तुमने जाना कभी न जान सकोगे ,
दिन में न दिखे कभी दर्द मेरे ,रातो में क्या दिखेंगे ये काली रात है ,........
देखेंगी क्या आँखे मेरी अब कल का सूरज ,
मुझे न जाने क्यू लगता है कि ये आखिरी रात है ,....
©Parul (kiran)Yadav
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