आंचल में छुपाकर के अपने,ममता के स्नेह से नहलाती है | हिंदी कविता

"आंचल में छुपाकर के अपने,ममता के स्नेह से नहलाती है। वह करुणामयी, दयालु, ममता की मूरत "मां" कहलाती है। वो वात्सल्यमयी, महान, वसुधा पर नेक इरादा है। ईश्वर को नहीं देखा,पर वह ईश्वर से कहीं ज्यादा है। मंदिर की मूर्तियों में भी ,मां की तस्वीर नजर आती है। मां मेरे लिए कभी दुर्गा , तो कभी लक्ष्मी बन जाती है। ©Pradeep Sharma"

 आंचल में छुपाकर के अपने,ममता के स्नेह से नहलाती है।
वह करुणामयी, दयालु, ममता की मूरत "मां" कहलाती है।
वो वात्सल्यमयी, महान, वसुधा पर नेक इरादा है।
ईश्वर को नहीं देखा,पर वह ईश्वर से कहीं ज्यादा है।
मंदिर की मूर्तियों में भी ,मां की तस्वीर नजर आती है।
मां मेरे लिए कभी दुर्गा , तो कभी लक्ष्मी बन जाती है।

©Pradeep Sharma

आंचल में छुपाकर के अपने,ममता के स्नेह से नहलाती है। वह करुणामयी, दयालु, ममता की मूरत "मां" कहलाती है। वो वात्सल्यमयी, महान, वसुधा पर नेक इरादा है। ईश्वर को नहीं देखा,पर वह ईश्वर से कहीं ज्यादा है। मंदिर की मूर्तियों में भी ,मां की तस्वीर नजर आती है। मां मेरे लिए कभी दुर्गा , तो कभी लक्ष्मी बन जाती है। ©Pradeep Sharma

#HappyMothersDay
#Mother
#pradeepsharma_ujjwalkavi

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