बिखरी है ख्वाहिशें ,उलझे हैं कुछ सवाल
मजबूरियां कुछ भी नहीं , बस अपनों से है बवाल,
खोखले रिश्तों के खातिर कर दिया अपने सपनो को नीलाम
इन मतलबी अपनों ने ही किया मुझे तन्हा सरेआम,
तन्हा होकर भी अब,कहाँ खुद को तन्हा पाता हूं
हर घड़ी हर पल , उस हसीन सायें को पास पाता हूँ,
अब काली रातों के साये से मुझे नहीं लगता है डर
अपनों के बिछाएं काटों से ही है मुश्किल डगर,
अगर होगी मेरे हाथों में उसके नाम की लकिर
मिल ही जायेगी मुझे वो ,सफ़र में बनकर मेरी तक़दीर
#Yaad