क्यों में अपने घर जाने से घबराने लगा
घर सोचते ही पैरो को कतराने लगा
क्या इसलिए कि मुझे चुनना पड़ेगा
हाँ जो मुझे दुनिया मे लाई फिर मुझे उसकी खातिर आज सुन्ना पड़ेगा
अब मुझे कोई एक चुनना पड़ेगा,
वो कहती है माँ का प्यारा चमचा मुझे
आज में पूछ लेता ही हूँ
की क्या उसने जिसने इतने नाजो से पाला
भूख खुद थी रोटी का वो टुकड़ा मेरे मुंह मे डाला,
क्या उसका मुझसे उम्मीद लगाना गलत था क्या
क्या उसका मुझ पे हक़ जताना गलत था क्या,
मानता हूं तेरा हक़ है मुझ पे तो क्या भूल जाऊं अस्तित्व अपना
कैसे भूलू उस धरा को जिसने नन्हे पौधे को अपने ऊपर उगाया था
खुद सुख गयी बिन पानी के और मुझ को छाती से दूध पिलाया था
तू कहती है मत सुनो उसकी वो बुढ़ापे में बावलाई है
बस तूने ये कह के मुझे असली याद दिलाई है
कैसे भूलू दुनिया की ठोकर खाकर जब में आया था
सच मे जादूगर थी वो, शक्ल देख कर ही मुझे सीने से लगाया था
एक बात कहना तू भूल ही गयी अब में तुझे याद दिलाता हूं
दुनिया भर की बाते बोली पर तु उसको झूठा कहना भूल गयी
वो मेरी माँ थी
सब दुख सह कर वो मुझ से कहना भूल गयी
सुंदरियाल जी
मजबूर बेटा...😊