आज की रात अपने आगोश में आ लेने दो, बर्फ जो जमी है | हिंदी कविता

"आज की रात अपने आगोश में आ लेने दो, बर्फ जो जमी है कब से , पिघल जाने दो... ना छुड़ाओ अपना हाथ, उंगलियों में हथेली समा लेने दो... माथे की बिंदी की जगह अपने लब अंकित करने दो प्यास जो लगी है मन में,चातक जिसे बुझाए बारिश से, वैसी तृप्ति पा लेने दो.. जैसे बादल राहत दे धरती को,सूरज की तपती धूप से, वैसे ही अपनी जुल्फों की काली घटा हम पर लिपट जाने दो, दूरियां जो बनाई है खुद की, सिमट जाने दो खुद को हमसे अलग ना जाने दो, आज की रात तन्हा ना रहने दो.. ©vicky"

 आज की रात 
अपने आगोश में आ लेने दो,
बर्फ जो जमी है कब से , पिघल जाने दो...
ना छुड़ाओ अपना हाथ,
उंगलियों में हथेली समा लेने दो...
माथे की बिंदी की जगह अपने लब अंकित करने दो
प्यास जो लगी है मन में,चातक जिसे बुझाए बारिश से,
वैसी तृप्ति पा लेने दो..
जैसे बादल राहत दे धरती को,सूरज की तपती धूप से,
वैसे ही अपनी जुल्फों की काली घटा
 हम पर लिपट जाने दो,
दूरियां जो बनाई है खुद की, सिमट जाने दो
खुद को हमसे अलग ना जाने दो,
आज की रात तन्हा ना रहने दो..

©vicky

आज की रात अपने आगोश में आ लेने दो, बर्फ जो जमी है कब से , पिघल जाने दो... ना छुड़ाओ अपना हाथ, उंगलियों में हथेली समा लेने दो... माथे की बिंदी की जगह अपने लब अंकित करने दो प्यास जो लगी है मन में,चातक जिसे बुझाए बारिश से, वैसी तृप्ति पा लेने दो.. जैसे बादल राहत दे धरती को,सूरज की तपती धूप से, वैसे ही अपनी जुल्फों की काली घटा हम पर लिपट जाने दो, दूरियां जो बनाई है खुद की, सिमट जाने दो खुद को हमसे अलग ना जाने दो, आज की रात तन्हा ना रहने दो.. ©vicky

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