उसकी यादों को खूबसूरत शाम लिखूंगी
उसकी आंखों को मयखाना लिखूंगी
मिले तो थे बड़े मन्नतों से हम इसलिए
मोहब्बत को मन्नत–ए– इश्क लिखूंगी
उसके जाने को बिरहा की रात लिखूंगी
उसके तोफो को बहुत संभाल कर रखूंगी
( उसके मजनू जैसे बर्ताब पर
उसे समझाकर संभाला करते थे )
आज खुद हीर बनकर उसे प्यार करूंगी
उसकी यादों को खूबसूरत शाम लिखूंगी
उसकी बाहों में खुद को महफूज–ए–जहान लिखूंगी
उसके चेहरे को चांद लिखूंगी
( उसके शराब पीने से कभी
ऐतराज़ हुआ करता था मुझको )
आज उस शराब को इश्क–ए–मयखाना लिखूंगी
( बहुत सुकून है इस शराब में साहब
मैं तो इसे दवा–ए–राहत लिखूंगी )
उसकी यादों को खूबसूरत शाम लिखूंगी
उसकी बातों को मोहब्बत का राग लिखूंगी
उसके कहने पर दिन को रात लिखूंगी
हमें इश्क हुआ है जनाब
इसे तो जन्नत–ए–जहान लिखूंगी
©Divyanshi singh ruhiva
उसकी यादों को खूबसूरत शाम लिखूंगी
उसकी आंखों को मयखाना लिखूंगी
मिले तो थे बड़े मन्नतों से हम इसलिए
मोहब्बत को मन्नत–ए– इश्क लिखूंगी
उसके जाने को बिरहा की रात लिखूंगी
उसके तोफो को बहुत संभाल कर रखूंगी
( उसके मजनू जैसे बर्ताब पर
उसे समझाकर संभाला करते थे )