"सन्नाटे पहरे पड़ें हैं शहरों में
ज़हन के शोर को कोई मानता नहीं ,,,,
किस दौर में हैं ?.?.
इंसान ख़ुद भी आईने में
ख़ुद को पहचानता नहीं ।।।
तकलीफ़ों में हैं हम
अब ये सोच कर ही....साथी
अभी शुरुआतों में हैं
और वक्त भी क़यामत का वक्त जानता नहीं ।।।।
©Mohit A Soni
"