White प्रकृति कहती,यही हमसे,ज़रा सँभलो,अजी इन्साँ। | हिंदी Poetry

"White प्रकृति कहती,यही हमसे,ज़रा सँभलो,अजी इन्साँ। सजाने घर यहाँ हमसे ,मिटाकर ना,बनो नादाँ।। यहाँ सिक्का,अजी खुद का,जमाने द्वंद जो छिड़ता। ज़रा समझा,अभी उसको,यहाँ जो व्यर्थ है भिड़ता।। ©Bharat Bhushan pathak"

 White प्रकृति कहती,यही हमसे,ज़रा सँभलो,अजी इन्साँ।
सजाने घर यहाँ हमसे ,मिटाकर ना,बनो नादाँ।।
यहाँ सिक्का,अजी खुद का,जमाने द्वंद जो छिड़ता।
ज़रा समझा,अभी उसको,यहाँ जो व्यर्थ है भिड़ता।।

©Bharat Bhushan pathak

White प्रकृति कहती,यही हमसे,ज़रा सँभलो,अजी इन्साँ। सजाने घर यहाँ हमसे ,मिटाकर ना,बनो नादाँ।। यहाँ सिक्का,अजी खुद का,जमाने द्वंद जो छिड़ता। ज़रा समझा,अभी उसको,यहाँ जो व्यर्थ है भिड़ता।। ©Bharat Bhushan pathak

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