जो बात तेरे दिल को भाय।
होठों पे तभी सजाना तुम।
जिस राह में शूल बिछे हो गर ।
चुनकर पुष्प बिछाना तुम।
राहगीर बनकर निकलो तो,
चींटी को भी नहीं सताना तुम।
गर मिले रुकावट चट्टानों की,
उसको अवश्य हटाना तुम।
अनुभव के जो पदचिन्ह मिले,
उन क़दमों पे जीवन भर चलना ।
देख सफलता गैर की तुम।
ईर्ष्या की आग में मत जलना।
मिले असफलता जीवन में ,
इस बात से कभी नहीं डरना।
बस ध्यान रहे इस समय चक्र का,
इक लम्हा भी व्यर्थ नहीं करना।
प्रकृति सा निश्छल प्रेम करो।
सागर सा गहरा धैर्य भरो।
नदिया सी निरंतरता हो पग पग में
अम्बर सा विस्तार करो।
ऐसा कोई धर्म नहीं धरा पर,
जिसमे ऊँच नीच भेदभाव नहीं।
इंसानियत से बढ़कर सुन्दर ,
किसी धर्म की छाँव नहीं।
©U.S. Varma
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