White ये कब कहती हूॅं मैं कि ग़लतियाॅं ही नहीं कर | हिंदी Shayari

"White ये कब कहती हूॅं मैं कि ग़लतियाॅं ही नहीं करती हूॅं मैं । इंसान हूॅं मैं भी, फ़रिश्ता होने का दावा कहाॅं करती हूॅं मैं?? कोई बता दे मुझे मेरी ग़लतियाॅं, की आख़िर हर बार ही ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं?? अड़ कर नहीं रहती अपनी ग़लतियों पर बल्कि अपनी ग़लतियों को सर झुका कर मान लेने का हौसला भी रखती हूॅ़ं मैं। लेकिन फ़िर भी ये सवाल सताता है मुझे कि, लोगों की नज़र में हर बार ही ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं?? #bas yunhi ek khayaal ....... ©Sh@kila Niy@z"

 White ये कब कहती हूॅं मैं कि 
ग़लतियाॅं ही नहीं करती हूॅं मैं ।
इंसान हूॅं मैं भी, 
फ़रिश्ता होने का दावा कहाॅं करती हूॅं मैं??
कोई बता दे मुझे मेरी ग़लतियाॅं, 
की आख़िर हर बार ही ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं??
अड़ कर नहीं रहती अपनी ग़लतियों पर 
बल्कि अपनी ग़लतियों को सर झुका कर 
मान लेने का हौसला भी रखती हूॅ़ं मैं।
लेकिन फ़िर भी ये सवाल सताता है मुझे कि,
लोगों की नज़र में हर बार ही 
ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं??

#bas yunhi ek khayaal .......

©Sh@kila Niy@z

White ये कब कहती हूॅं मैं कि ग़लतियाॅं ही नहीं करती हूॅं मैं । इंसान हूॅं मैं भी, फ़रिश्ता होने का दावा कहाॅं करती हूॅं मैं?? कोई बता दे मुझे मेरी ग़लतियाॅं, की आख़िर हर बार ही ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं?? अड़ कर नहीं रहती अपनी ग़लतियों पर बल्कि अपनी ग़लतियों को सर झुका कर मान लेने का हौसला भी रखती हूॅ़ं मैं। लेकिन फ़िर भी ये सवाल सताता है मुझे कि, लोगों की नज़र में हर बार ही ग़लत कैसे साबित हो जाती हूॅं मैं?? #bas yunhi ek khayaal ....... ©Sh@kila Niy@z

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