तुम क्या हो मेरी, यह मुझे इल्म नहीं, कुछ तो हो जरू

"तुम क्या हो मेरी, यह मुझे इल्म नहीं, कुछ तो हो जरूरी, अब बस यही समझ मुझे आता है। सुबह हो,इस रात की, या छाव हो,इस धूप की, कहीं उन सुनसान राहों के उन पेड़ों की तरह तो नहीं तुम। बारिश हो शायद, तुम अप्रेल की, या दिसंबर की हो धूप तुम, कहीं फरवरी के उस छोटे से हसीन महीने की तरह तो नहीं तुम। part 1 Anshul"

 तुम क्या हो मेरी, यह मुझे इल्म नहीं, कुछ तो हो जरूरी, अब बस यही समझ मुझे आता है। सुबह हो,इस रात की, या छाव हो,इस धूप की, कहीं उन सुनसान राहों के उन पेड़ों की तरह तो नहीं तुम।

बारिश हो शायद,
तुम अप्रेल की, या दिसंबर की हो धूप तुम,
कहीं फरवरी के उस छोटे से हसीन महीने की तरह तो नहीं तुम।


part 1
Anshul

तुम क्या हो मेरी, यह मुझे इल्म नहीं, कुछ तो हो जरूरी, अब बस यही समझ मुझे आता है। सुबह हो,इस रात की, या छाव हो,इस धूप की, कहीं उन सुनसान राहों के उन पेड़ों की तरह तो नहीं तुम। बारिश हो शायद, तुम अप्रेल की, या दिसंबर की हो धूप तुम, कहीं फरवरी के उस छोटे से हसीन महीने की तरह तो नहीं तुम। part 1 Anshul

People who shared love close

More like this

Trending Topic