"हम ही इसे हराएंगे "
' यह सुनी पड़ी गलीया , यह बन्द दरवाज़े ।
हमको अपने घरों में कैद बतलाते है ।।
सडको पर जो रोटी को तरसे है ।
हमारे समाजवाद को निर्बल दिखलाते है ।।
अस्पतालो में बेड नही , ऑक्सिजन नही फिज़ाओ में ।
ना जाने क्यों विकासवाद पर हम इतना इतराते है ।।
हर रोज दम तोड़ती अनगिनत साँसे है ।
हमारी नाकाम व्यवस्थाओ के मुँह पर तमाचे है ।।
अंधेरा बड़ा घना है , अदृश्य शत्रु बड़ा जालिम है ।
हाथों में मशाल लेकर हम उजियाला लाएंगे ।।
कोरोना आया कही से भी हो हम ही इसे हराएंगे ।।।
_लफ्ज़ ए कुमार_
©Lafz-E-Kumar
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