तब और अब की सब बातों में, देखो कितना अंतर है। कल्प

"तब और अब की सब बातों में, देखो कितना अंतर है। कल्पनाओं से परे बनीं, बातें और सबमें अचरज है।। तीन-चार मीलों पैदल, चलकर विद्यालय को जाना। तनिक भूल होती थी तो, अध्यापक के डंडे खाना।। कहाँ थे तब ये मोबाइल, थे टेलीफोन डब्बे वाले।। उनमें भी बातों की शंका, लगा दिये जाते ताले।। चौका चूल्हा फूँक फूँक कर, धुआँ भरता था आंखों में। बिजली कहाँ थी दिये जलाकर, सब पढ़ते थे रातों मैं।। कितना सब कुछ बदल गया है, कल की बात लगें उपहास। माता-पिता बताते सच हैं, किन्तु नहीं होता विश्वास।। नेति। धन्यवाद। ©bhishma pratap singh"

 तब और अब की सब बातों में, देखो कितना अंतर है।
कल्पनाओं से परे बनीं, बातें और सबमें अचरज है।।
तीन-चार मीलों पैदल, चलकर विद्यालय को जाना।
तनिक भूल होती थी तो, अध्यापक के डंडे खाना।।
कहाँ थे तब ये मोबाइल, थे टेलीफोन डब्बे वाले।।
उनमें भी बातों की शंका, लगा दिये जाते ताले।।
चौका चूल्हा फूँक फूँक कर, धुआँ भरता था आंखों में।
बिजली कहाँ थी दिये जलाकर, सब पढ़ते थे रातों मैं।।
कितना सब कुछ बदल गया है, कल की बात लगें उपहास।
माता-पिता बताते सच हैं, किन्तु नहीं होता विश्वास।।
नेति।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh

तब और अब की सब बातों में, देखो कितना अंतर है। कल्पनाओं से परे बनीं, बातें और सबमें अचरज है।। तीन-चार मीलों पैदल, चलकर विद्यालय को जाना। तनिक भूल होती थी तो, अध्यापक के डंडे खाना।। कहाँ थे तब ये मोबाइल, थे टेलीफोन डब्बे वाले।। उनमें भी बातों की शंका, लगा दिये जाते ताले।। चौका चूल्हा फूँक फूँक कर, धुआँ भरता था आंखों में। बिजली कहाँ थी दिये जलाकर, सब पढ़ते थे रातों मैं।। कितना सब कुछ बदल गया है, कल की बात लगें उपहास। माता-पिता बताते सच हैं, किन्तु नहीं होता विश्वास।। नेति। धन्यवाद। ©bhishma pratap singh

#तब और अब#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#काव्य संकलन#ज्ञान विज्ञान#बदलता परिपेक्ष्य #ThenandNowअक्टूबर creator

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