"लफ़्ज़ात आज कल जज़्बातों को मेरे अब साथ नहीं रखते ,
वो जिम्मेदारी तो बहुत रख देते हैं कंधों पे मगर हाथ नहीं रखते... !
हाथों की तासीर ना जाने क्यूँ अब खफा सी है
लिखते हैं मंज़िल बस इन थर्राते हाथों से अब कायनात नहीं लिखते.. !!"
लफ़्ज़ात आज कल जज़्बातों को मेरे अब साथ नहीं रखते ,
वो जिम्मेदारी तो बहुत रख देते हैं कंधों पे मगर हाथ नहीं रखते... !
हाथों की तासीर ना जाने क्यूँ अब खफा सी है
लिखते हैं मंज़िल बस इन थर्राते हाथों से अब कायनात नहीं लिखते.. !!