मुलाक़ात मेरे शहर के उस पार एक शहर बसता है
वहीं कहीं एक शहरी रहता है
वो करता है बातें बड़े अदब से
सुना है बड़े अदब से रहता है
किसी का कागज़ किसी की कलम
वो किसी की लिखी दास्तां अपनी ज़ुबानी कहता है
मेरे शहर के उस पार एक शहर बसता है
वहीं कहीं एक शहरी रहता है
सुनो...
वो समझता है भाषा प्रकृति की
वो बोलता है जुबां प्रकृति की
मैंने देखा है उसी के संग एक सुंदर सा खरगोश रहता है
मेरे शहर के उस पार एक शहर बसता है
वहीं कहीं एक शहरी रहता है
कितने अदब से आता है वो सबसे पेश
कितनी सहजता से वो सबकी बातें सुनता है
आहिस्ता आहिस्ता कुछ इस कदर वो नए लोगों संग रिश्ता बुनता है
मेरे शहर के उस पार एक शहर बसता है
वहीं कहीं एक शहरी रहता है
©Manish Sarita(माँ )Kumar
पूरी कविता discription में
......एक मुलाकात नए शहरी संग......
मेरे शहर के उस पार एक शहर बसता है
वहीं कहीं एक शहरी रहता है
वो करता है बातें बड़े अदब से
सुना है बड़े अदब से रहता है