किसान कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी, इन | हिंदी Poetry

"किसान कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी, इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन, फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते, फिर भी मुख से आह न भरते। ©Heer"

 किसान 

कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी,
इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। 

लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन,
फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। 

सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते,
फिर भी मुख से आह न भरते।

©Heer

किसान कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी, इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन, फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते, फिर भी मुख से आह न भरते। ©Heer

#farmersprotest #किसान

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