सुख मंज़िल का अंत छोर दुःख जाये शायद तजकर
साहस श्रापित जीवन बाधित देह कंटकों के पथ पर
दर्शन दर्प के भीतर भीतर बाहर आध्यात्मिक ठोकर
चारों ओर फिरे ख़ामोशी चहल पहल बैठी है छुपकर
पीड़ाएँ कर रही पैरवी संभव है उम्मीदों को कारावास
संघर्षों की सुनवाई से सन्यासी हो जाये शायद उजास
मर्म मोम सा पिघल रहा है व्यथा मौन रहने पर राज़ी
हार गया फ़िर से भोलापन मार गयी चालाकी बाज़ी
©Chandrashekhar Trishul
#Lights