रोशिनी रोशिनी चिरागों से जब जाती
दर्द का धुंए सा अहसास दे जाती
कभी हुई थी जिनकी पलके हम से भारी
कुछ मजबूर हुए हम जो की उनसे दूरी
दांव पर उनकी इज्जत न लगे
यही कोशिश थी हमारी
वरना जमाना कहता
झूठी है मौहब्बत उनसे हमारी
हालांकि हैसियत ऐसी नहीं थी हमारी
हैसियत