एहसान उसके हम इश्क पर करने चले थे, नादान वो भी थे | हिंदी Shayari

"एहसान उसके हम इश्क पर करने चले थे, नादान वो भी थे जो हम पर मरने चले थे। गुमराह ही सही पर गुमां था हमें खुद पर, वो मुकम्मल वही सजा फिर करने चले थे।...prk ©प्रदीप राज खींची"

 एहसान उसके हम इश्क पर करने चले थे,
नादान वो भी थे जो हम पर मरने चले थे।
गुमराह ही सही पर गुमां था हमें खुद पर,
वो मुकम्मल वही सजा फिर करने चले थे।...prk

©प्रदीप राज खींची

एहसान उसके हम इश्क पर करने चले थे, नादान वो भी थे जो हम पर मरने चले थे। गुमराह ही सही पर गुमां था हमें खुद पर, वो मुकम्मल वही सजा फिर करने चले थे।...prk ©प्रदीप राज खींची

जख्म#

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