जितना सम्भलना चाहा उतना ही टूट गए हम, किस्मत के आ | हिंदी शायरी
"जितना सम्भलना चाहा उतना ही टूट गए हम,
किस्मत के आगे आखिर मजबूर हो गए हम,
आँसुओ की बौछारों मे बुरी तरह डूब गए हम,
हर किसी से दूर रहना अब सिख ही गए हम,
हलीमा कुछ तो दवा कर अपने इन ज़ख्मो की,
कही ले ना डूबे फकत तुझे इन ज़ख्मो का गम||
~Halima usmani"
जितना सम्भलना चाहा उतना ही टूट गए हम,
किस्मत के आगे आखिर मजबूर हो गए हम,
आँसुओ की बौछारों मे बुरी तरह डूब गए हम,
हर किसी से दूर रहना अब सिख ही गए हम,
हलीमा कुछ तो दवा कर अपने इन ज़ख्मो की,
कही ले ना डूबे फकत तुझे इन ज़ख्मो का गम||
~Halima usmani