मिट्टी का पुतला ढह मैदान हो गया ..
ख़ौफ का वो घर अब मसान हो गया..।।
रुख़ बदल के ख़ुद रिश्ता ये कहता है ..
तेरा इब्न ही अब तेरा मेहमान हो गया..।।
मेरे चाहने वालों में कई खंजर थे शामिल ..
मेरी पीठ पीछे हर कोई बईमान हो गया.. ।।
औरों से क्या गिले.. मैं अपने साये से परेशां हूँ..
अहबाब था एक वक़्त, ये भी शैतान हो गया..।।
ज़िदगी ख़त्म हो,दिल का दौरा लगे बस,
ज़ार ज़ार धड़कनों को बहुत नुकसान हो गया..।।
मिट्टी का पुतला ढह मैदान हो गया ..
ख़ौफ का वो घर अब मसान हो गया..।।
रुख़ बदल के ख़ुद रिश्ता ये कहता है ..
तेरा इब्न ही अब तेरा मेहमान हो गया..।।
मेरे चाहने वालों में कई खंजर थे शामिल ..
मेरी पीठ पीछे हर कोई बईमान हो गया.. ।।