#RIPDilipKumar

"#RIPDilipKumar ( बारिश ) कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप, थोड़ी ठंडी और गर्मी का नज़ारा लेता है रूप, दिन निकलते ही दोपहर चला आता है, शाम का माहौल घने बादलों में बदल जाता है, कहीं कहीं कौंधती है बिजली तो कहीं कहीं कड़कड़ाती है खुप.. कहीं कहीं होती ................................ रुकते ही बारिश बादल आपस में मिलते हैं, कुछ देर बातें करके समंदर की ओर चलते हैं, कहीं कहीं उठती हैं लहरें तो कहीं कहीं रहती चुप,, कहीं कहीं होती.............................. खेती जमीं से बहते हुए पानी नाली नदियों का जाता है, तट को लगा हर एक पेड़ पौधा चैन की सांस लेता है, कही कहीं चिडिया करती है चिं व चिं व तो कहीं कहीं बन्दर करते हैं हुप, कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप......... कवि एकाग्र हेगड़े ©santosh hegde"

 #RIPDilipKumar                                    ( बारिश )                                   कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप, थोड़ी ठंडी और गर्मी का नज़ारा लेता है रूप, दिन निकलते ही दोपहर चला आता है, शाम का माहौल घने बादलों में बदल जाता है, कहीं कहीं कौंधती है बिजली तो कहीं कहीं कड़कड़ाती है खुप.. कहीं कहीं होती ................................ रुकते ही बारिश बादल आपस में मिलते हैं, कुछ देर बातें करके समंदर की ओर चलते हैं, कहीं कहीं उठती हैं लहरें तो कहीं कहीं रहती चुप,, कहीं कहीं होती.............................. खेती जमीं से बहते हुए पानी नाली नदियों का जाता है, तट को लगा हर एक पेड़ पौधा चैन की सांस लेता है, कही कहीं चिडिया करती है चिं व चिं व तो कहीं कहीं बन्दर करते हैं हुप, कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप......... कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde

#RIPDilipKumar ( बारिश ) कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप, थोड़ी ठंडी और गर्मी का नज़ारा लेता है रूप, दिन निकलते ही दोपहर चला आता है, शाम का माहौल घने बादलों में बदल जाता है, कहीं कहीं कौंधती है बिजली तो कहीं कहीं कड़कड़ाती है खुप.. कहीं कहीं होती ................................ रुकते ही बारिश बादल आपस में मिलते हैं, कुछ देर बातें करके समंदर की ओर चलते हैं, कहीं कहीं उठती हैं लहरें तो कहीं कहीं रहती चुप,, कहीं कहीं होती.............................. खेती जमीं से बहते हुए पानी नाली नदियों का जाता है, तट को लगा हर एक पेड़ पौधा चैन की सांस लेता है, कही कहीं चिडिया करती है चिं व चिं व तो कहीं कहीं बन्दर करते हैं हुप, कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप......... कवि एकाग्र हेगड़े ©santosh hegde

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