झुकीं निगाहें जैसे कि शर्मा गई हो,
किसी के छूने से जैसे कि घबरा गई हो।
देखकर मुझे वो कुछ इस तरह मुस्कराई ,
लगा कि जैसे वो मेरे दिल में आ गई हो ।
जरा धीरे से पास जाकर थामा हाँथ उनका,
वो मचली इस कदर जैसे लहरें करवटे बदल रही हो ।
मास सावन का हैं, गरजते बादलों संग बिजली तड़पी,
वो चिपकी मुझसे कुछ इस तरह
कि कोई नदियाँ समन्दर में समा गई हो।
मैं उड़ता बादल सा मड़रा रहा था,
वो प्यासी धरती सी सूख रही थी ।
मैंने कि प्रेमवर्षा, वो झूमि कुछ इस तरह कि
जैसे कोई मोर नृत्य कर रहा हो।
मैंने पूंछा कि तुम मेरी बनोगी,
वो हँस के बोली, मैं तो कब का हो चुकी हूँ ।
मैंने चूमे होंठ उनके, वो भागी दूर मुझसे
जैसे कि एक दफा फिर शर्मा गई हो,
मेरे छूने से घबरा गई हो ।।
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