अकेले बैठ कहीं, ऐसा सोच रही हूं। दुनियां की बदली | हिंदी कविता

"अकेले बैठ कहीं, ऐसा सोच रही हूं। दुनियां की बदली तस्वीर, नोंच रही हूं।। मुझे लगा हालात, वक्त आने पर सुधर जाएंगे। अपने किरदार को, एक उदाहरण से निभाएंगे। मैं फिर से पुरानी तस्वीर, खरोंच रही हूं। दुनियां की बदली तस्वीर, नोंच रही हूं।। ©Satish Kumar Meena"

 अकेले बैठ कहीं,
ऐसा सोच रही हूं। 
दुनियां की बदली तस्वीर,
नोंच रही हूं।।

मुझे लगा हालात,
वक्त आने पर सुधर जाएंगे।
अपने किरदार को,
एक उदाहरण से निभाएंगे।

मैं फिर से पुरानी तस्वीर,
खरोंच रही हूं।
दुनियां की बदली तस्वीर,
नोंच रही हूं।।

©Satish Kumar Meena

अकेले बैठ कहीं, ऐसा सोच रही हूं। दुनियां की बदली तस्वीर, नोंच रही हूं।। मुझे लगा हालात, वक्त आने पर सुधर जाएंगे। अपने किरदार को, एक उदाहरण से निभाएंगे। मैं फिर से पुरानी तस्वीर, खरोंच रही हूं। दुनियां की बदली तस्वीर, नोंच रही हूं।। ©Satish Kumar Meena

सोच रही हूं

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