हाल ए दिल तुम्हें क्या सुनाऊं
कि एक तुम्हें ही तो अपनी हर कविता में सजाऊं
तुम हो तो मैं मुस्कुराऊं
बिन तेरे उदास हर लम्हा
बिन तेरे तन्हायों में ख़ुद से ही उलझ जाऊं
तुम हो तो हर खुशी से मिल जाऊं
तुम हो तो हर गम भूल जाऊं
तुम हो कुदरत से मिला नायाब तोहफा
जीना दुश्वार हो जाएगा जो हुए तुम खफा
तुम्हारी आंखों में दिखे खुशियों का समंदर
तुम हो तो दिलकश है हर मंजर
मैंने हारा तुम पर दिल
मेरी खुशी और दर्द में तू हो शामिल
तुम हो तो इश्क मेरे आगाज़ है
तुम पर ही तो मेरी चाहतों का अंजाम है
तुम हो तो पतझड़ भी गुलजार है
तुम हो तो वीराने भी बाहर है
और कैसे हाल ए दिल सुनाऊं
अपनी हर कविता में तुझे ही सजाऊं
©kavya soni
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