तुम्हारी बात समझी जा रही है तुम्हें इतनी हसी क्यूँ | हिंदी Poetry

"तुम्हारी बात समझी जा रही है तुम्हें इतनी हसी क्यूँ आ रही है लिहाफ़ों को बदन महँगा पड़ेगा नई इक नस्ल नंगी आ रही है मैं इसके बिन अकेली क्या करूँगी मेरी बेटी मुझे समझा रही है तुम्हारे गाँव का रस्ता यही है मुझे कच्ची सड़क बतला रही है शमसुल हसन "शम्स""

 तुम्हारी बात समझी जा रही है
तुम्हें इतनी हसी क्यूँ आ रही है

लिहाफ़ों को बदन महँगा पड़ेगा
नई इक नस्ल नंगी आ रही है

मैं इसके बिन अकेली क्या करूँगी
मेरी बेटी मुझे समझा रही है

तुम्हारे गाँव का रस्ता यही है
मुझे कच्ची सड़क बतला रही है

शमसुल हसन "शम्स"

तुम्हारी बात समझी जा रही है तुम्हें इतनी हसी क्यूँ आ रही है लिहाफ़ों को बदन महँगा पड़ेगा नई इक नस्ल नंगी आ रही है मैं इसके बिन अकेली क्या करूँगी मेरी बेटी मुझे समझा रही है तुम्हारे गाँव का रस्ता यही है मुझे कच्ची सड़क बतला रही है शमसुल हसन "शम्स"

तुम्हारी बात समझी जा रही है
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