चाहे जेठ की अंगारे बरसाती चिलचिलाती दोपहरी हो, चाह
"चाहे जेठ की अंगारे बरसाती चिलचिलाती दोपहरी हो,
चाहे सावन की प्रलयकारी घटाये।
चाहे खून को बर्फ सी जमा देने वाली माघ,
मेरी मांसपेशियां फौलादी है।
मेहनत मशक्कत से ना घबराने, शर्माने वाला,
मैं एक मजदूर हूं मजबूर मजदूर।"
चाहे जेठ की अंगारे बरसाती चिलचिलाती दोपहरी हो,
चाहे सावन की प्रलयकारी घटाये।
चाहे खून को बर्फ सी जमा देने वाली माघ,
मेरी मांसपेशियां फौलादी है।
मेहनत मशक्कत से ना घबराने, शर्माने वाला,
मैं एक मजदूर हूं मजबूर मजदूर।