यूँ किसी को राह में तन्हा अकेला नहीं छोड़ते... {Bindas Poetry} Pankaj Bindas
प्रेम के विरह में प्रेमी निराशावादी बन जाता है, जहाँ विरह स्थायी ही हो जाए तो प्रेमी का निराश अंतर्मन कविता रूपी आलंबन की आस करता है, वह कविता रचता है या शायर बन जाता है। कविता के उदात्त भाव उसके अंतर्मन के दमित भावों से कुछ इस प्रकार तारतम्य स्थापित करते हैं कि फिर वह बिना कविता के, बिना शायरी के रह नहीं पाता। अंतर्मन में निराशा के प्रकटीकरण से संपूर्ण संसार निराशाजनक लगता है, ऐसी निराशा से दो- दो हाथ करने के लिए मन के किसी कोने में नीति जन्म लेती है। प्रेमी नैतिक मूल्यों की बात करता है, वह अनैतिक को नैतिकता की प्रेरणा देना चाहता है, किंतु भूल जाता है कि प्रेम में कुछ भी अनैतिक नहीं, प्रेम तो शुद्ध नैतिक है। सारे समाधान जब क्षर जाते हैं, केवल पीड़ा रह जाती है केवल बेचैनी रह जाती है, उस भावदशा का नाम है प्रेम। प्रेम को सिर्फ बंधनों में जकड़ कर ही नहीं पाया जा सकता, प्रेम विवाहोत्तर है अर्थात् लोकोत्तर।
पंकज बिंदास🙏🌻
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