मन में उत्पन्न व्यवधान एक
जैसे मृग,मृग तृष्णा को लेके
मैं रूप विहीन अरु प्रकाश सीं,
बँधी उस मृग छाल रूप में!!
मृग रूपी में, मैं मृग मोहक
ताम्र पादप सीं मैं मन मोहक,
सृष्टि को देखन के ख़ातिर,
घर से बाहर मैं निकल पड़ी!!
अंदाज_छवि
मृग तृष्णा सी सरु रूपी.... Lekh!!
#मोहक
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