*नारी की प्रकृति *
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कभी फूलों सी नाजुक, कभी पत्थर-सी कठोर हो जाती है।
नारी अपने हर रूप में, दुनिया को एक नयी दिशा दिखलाती है।।
कभी मुश्किलों में हँसती, कभी अपनों को तकलीफ़ में देख रो पड़ती है।
नारी अपने हर रंग में , सबको खुश रखने की कोशिश करती है।।
कभी दिन भर चुप, कभी पल में बहुत कुछ बोल जाती है।
नारी अपने अंतर्मन को फिर भी न खोल पाती है।।
कभी मायके की इज्ज़त बढ़ाती है, कभी ससुराल की परंपरा निभाती है।
नारी अपने हर किरदार को, पूरी ईमानदारी से निभाती है।।
कभी किचन में लज़ीज व्यंजन बनाती है, कभी प्रशासक बन विकास का सशक्त आधार बनाती है।
नारी अपनी हर भूमिका में, भवन की नींव को मजबूत बनाती है।।
कभी शीतल नीर-सी बहती है, कभी दहकती ज्वाला-सी तमतमाती है।
नारी प्रकृति के हर तत्व में, प्राण-शक्ति का संचार कर जाती है।।
अपने जीवन की व्यथा को, वीर माताओं की गाथा में बदल जाती है।
नारी अपना सर्वस्व न्योछावर कर भी, पुरुष को सदा सही मार्ग ही दिखलाती है।।
©Satyam Tiwari
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