"Ego इगो के चक्कर में
अपनों को क्यूँ खो रहे हो,
चाहत तुमको आम की है
फिर बबूल क्यूँ बो रहे हो,
क्यूँ बढ़ा है गुरूर तुम्हारा
इगो को क्यूँ ढ़ो रहे हैं..
. हमीद अली"
Ego इगो के चक्कर में
अपनों को क्यूँ खो रहे हो,
चाहत तुमको आम की है
फिर बबूल क्यूँ बो रहे हो,
क्यूँ बढ़ा है गुरूर तुम्हारा
इगो को क्यूँ ढ़ो रहे हैं..
. हमीद अली