पानी पीते हुए सोचता हूँ
कैसे रहता है इतना ठंडा पानी
इस मटके में और
आखिर कैसे बना ये मिट्टी से मटका
तो इसके जीवन को जाना
इसकी कहानी को समझा तो पाया
इसने सहे हैं कष्ट अतीत में बहुत ज्यादा
मिट्टी से मटके का आकार बदलने में
रौंदा है कुम्हार ने खूब अपने हाथों से
फिर रहा है एक लंबे दुःख के साथ
आग की लपटों में तपते हुए
पड़ा रहा है भट्टी में संयम के साथ
और किया है इंतजार अपने
स्वरूप के बदलने का
आकार बदलने या
स्वभाव में ठंडापन रखने के लिए
रहना होता है दुःख के साथ
करना होता है संघर्ष रुंधते हुए
और रखना होता है सयंम
अपने समय के आने का
बहुत आसान होता है
मिट्टी का सिर्फ मिट्टी ही रहना
🖋️🖋️🖋️......राज
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#walkingalone