युवा शक्ति
युवा शक्ति क्यों भटक रही है,
प्रेम जाल में उलझ रही है।
संस्कारों की बली चढ़ाकर,
टुकड़ों में क्यों बंट रहीं है।
युवा शक्ति ने श्रम को छोड़ा,
कैसे कह दूँ भ्रम को तोड़ा।
खुद को ही वो अहम बताकर,
संबंधों से मुंँह को मोड़ा।
युवा शक्ति को जोश बड़ा है,
समझें खुद को तोप बड़ा है।
गलती खुद की कभी न माने,
कहें बाद में दोष बड़ा है।
युवा शक्ति को कहाँ होश है,
बसा उनके मन में रोष है।
कहती है कलयुग की माया,
मेरे सिवा सब में दोष है।
युवा शक्ति क्यों भटक रही है,
प्रेम जाल में उलझ रही है।
संस्कारों की बली चढ़ाकर,
टुकड़ों में क्यों बंट रहीं है।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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युवा शक्ति
युवा शक्ति क्यों भटक रही है,
प्रेम जाल में उलझ रही है।
संस्कारों की बली चढ़ाकर,
टुकड़ों में क्यों बंट रहीं है।