ये कविता उस बालक की आवाज है जो एक तरफ तो इतना साहासी है कि खुद उस बेरहम मौसम को ललकार रहा है तो वहीं उसका ह्रदय भावुक होकर कुछ मांग भी रहा है।
यूं तो दुनिया में सभी तरह का दर्द दुःख मौजूद है और कोई उसके लिए पूरी तरह से कुछ करे न करे पर हम ये जरूर देखे की हम किस भविष्य की ओर जा रहे है जहां गरीब और गरीब होता जा रहा है।
किसी को मिला ये जीवन यूं ही बीत जाता हैं,
संवारो इसे भी जैसे अपना घर सजाया है
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