जब जिंदगी एक कमरे में बिताई जाए,
पानी पी कर भूख मिटाई जाए,
तब मां याद आती हैं।
जब आंख अंधेरे में खुल जाए,
कोई आस पास नजर नहीं आए,
तब मां याद आती हैं।
जब अकेलापन जकड़ जाए,
नए शहर में कोई रिश्ता नजर नहीं आए,
तब मां याद आती हैं।
जब पेट में भूख शोर मचाए,
खाने को रोटी कम पड़ जाए,
तब मां याद आती हैं।
जब दवाई बेअसर हो जाए,
सिरहाना एक हाथ की छुअन को तरस जाए,
तब मां याद आती हैं।
-मोनिका वर्मा
21.01.2024
©Monika verma
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