बेफ्रेकी से भरी हुई रातें,
नटखट मन कि सुलझी हुई बातें
दोस्तों की महफ़िल जो सजी
बीती हैं जो शाम किलकारियों से भरी।
पल में रूठना, पल भर में मान जाना
लापरवाही से भी सुकून की जिंदगी सजाना
अब सब जिम्मेदारियों मैं बदल गया
हंसी ठिठोली से भरा बचपन अब मचल सा गया।
एक दिन सबको तो बड़े हो जाना है
फिर क्यों हमें बच्चों का बचपना चुराना हैं
क्यों डालना बोझ उन पर
क्यों उन्हें समझदार बनाना है,
जीने दो खुलकर उन्हें,
चार दिन की जिंदगी में क्यों हसीन लम्हों को गवाना है।
©Sanjana Bhatt
बचपन ❤️✍️©️Sanjana Bhatt
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