"धधक उठी है दिल मे मेरे होली की हुंकार
कसम है मुरली वाले कि तुझे छोड़ू न अबकी बार
ऐसा रंग लगाउ तुझको रंग जाए तेरा तन
कर दे तो ख़ुदको समर्पण भीग जाए मेरा मन
आनंद की फुहार उड़े, उड़े अबीर गुलाल
फागुन में गोरी तू हो गई है हुस्न से मालामाल
योवन की ऐसी छटा देख हो रहे हम निढ़ाल
कब आओगी हमसे खेलन को होली दिल पूछे यही सवाल
©Mahender parsad
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