भूलकर अपने सपने सुहाने सभी
खुद को तजकर खिले जैसे खिलती जमीं
खिलखिलाहट से इनकी जवां हम हैं
बेटों से बेटियां ये ....
बेटों से भी बड़ा इनका अभिमान है
दो दो घर का इन्हीं से तो सम्मान है
मिलते इनको विरासत में संयम हैं
बेटों से बेटियां ये...
सेवा करती हैं ये, दुख को हरती हैं ये
काटों में भी कुसुम सा महकती हैं ये
गहरे हर जख्म का होती मरहम हैं
बेटों से बेटियां ये...
पूरी करती हैं घर की वो सारी कमी
लक्ष्मी (बेटियों) से ही फलती है घर की ज़मीं
इनके कदमों में खुशियों के संगम हैं
बेटों से बेटियां ये ...
©Rimpy Ankur Leekha
#बेटियां