बस इतनी ख़ुशी है जो मुझको मिली है
की उनकी जुल्फ़ों की छांव में इक शाम जी'ली है
डगमगा जाते हैं क़दम मेरे उनकी दहलीज पर
कौन सी ख़ता कर दी जो थोड़ी सी पी'ली है
बेपरवाही का आलम इस क़दर है इश्क़ में देखो
पहनी है जो पतलून हमने वो आधी सिली है
बना लो कितने भी शागिर्द पर सुन लो ओ उस्ताद
राजनीति पकड़ तुम्हारी अभी बहुत ढ़ीली है
लाख़ तोहमतें भले लगाए दुनियां हम पर
लेकिन क्या बीन बजाने से कभी भैंस हिली है
©Kirbadh
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